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‘हमें भी परिवार की चिंता है और हम भी परिवार के साथ रहना चाहते हैं’ : छठ पर्व खत्म होने के बाद प्रदेश लौट रहे मजदूरों का छलका दर्द

छठ पूजा को लेकर रेलवे की ओर से काफी संख्या में संचालित हैं स्पेशल ट्रेन, बावजूद यात्रियों को हो रही परेशानी

नवादा : घर में छठ महापर्व मनाने के बाद अब काम पर दूसरे प्रदेशों में अब वापस लौट रहें हैं बिहार वासी . इनमें कोई उच्च शिक्षा के लिए दूसरे प्रदेश जा रहा है, तो कोई कमाने के लिए दूसरे प्रदेश जा रहा है. सभी का कहना था कि हमारे राज्य में यदि उच्च शिक्षा की स्थिति बेहतर रहती और रोजगार के अच्छे अवसर होते तो उन्हें दूसरे प्रदेश का रुख नहीं करना पड़ता। मजदूरों ने कहा कि जब परिवार में बच्चे का चेहरा देखते हैं और काम के लिए दूसरे प्रदेश जाना पड़ जाता है , तो 56 इंच का मजबूत कलेजा भी कांप जाता है।

टिकट कंफर्म नहीं, लेकिन पैसे कमाने के लिए जाना जरूरी : नवादा और तिलैया जंक्शन पर ट्रेन के लिए इंतजार कर रहे छात्र राहुल कुमार ने बताया कि दिल्ली में बी.टेक कर रहा है. कॉलेज में परीक्षा शुरू हो रही है, इसलिए सोमवार को दिल्ली पहुंचना जरूरी है. टिकट कंफर्म नहीं हुआ. अब वह दिल्ली जाने वाले किसी ट्रेन में चढ़ने की सोच रहा है. उसने कहा कि टीटीई से बात करेंगे और जितना पैसा में टिकट बनेगा देकर यात्रा करेंगे. स्पेशल ट्रेन चल रही है लेकिन कोई फायदा नहीं है क्योंकि स्पेशल ट्रेन समय पर नहीं चल रही है.

मजदूरों का छलका दर्द : “बिहार में उच्च शिक्षा की स्थिति अच्छी होती और यहां के कॉलेजों में प्लेसमेंट के लिए बड़ी कंपनियां आती तो छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए दूसरे प्रदेश में नहीं जाना पड़ता.”- राहुल कुमार , छात्र नवादा

काम के लिए दूसरे प्रदेश जाना मजबूरी : दिल्ली के आनंद बिहार जा रहे अनूप यादव ने बताया कि वह मजदूरी करने के लिए दिल्ली जा रहा है. बिहार में कंपनियां होती, जहां उन्हें काम मिल जाता तो उन्हें दिल्ली नहीं जाना पड़ता. उनके साथ उनके गांव के आधे दर्जन सदस्य हैं, जो वहां मजदूरी करते हैं. वह सभी छठ मनाने बिहार आए हुए थे और छठ खत्म होने के बाद फिर से काम करने के लिए दिल्ली लौट रहे हैं. वे तिलैया से गया जाकर ट्रेन पकड़ने के लिए आए हुए हैं.

“परिवार से दूर जाने में दर्द होता है, लेकिन परिवार चलाने के लिए पैसा जरूरी है और पैसा कमाने के लिए वह दूसरे प्रदेश में जा रहे हैं. बिहार में रोजगार रहता तो बाहर क्यों जाते.”- रानी कुमारी ,खनखनापुर

परिवार से दूर जाने में फटता है कलेजा : मजदूरी के लिए तमिलनाडु जा रहे युवक सुरेश मालाकार ने कहा कि छठ मनाने के लिए बिहार में अपने गांव आए हुए थे. छठ खत्म होने के बाद काम के लिए तमिलनाडु लौट रहे हैं. तमिलनाडु की फैक्ट्री में वह काम करते हैं. उसे इस बात का दर्द है कि बिहार में फैक्ट्री नहीं है. उसने बताया कि वह होली में गांव नहीं आ पाएगा. सिर्फ छठ के दौरान एक बार साल में अपने गांव आता है और परिवार के साथ समय बिताता है.

“परिवार के साथ रहना अच्छा लगता है, लेकिन जब लंबे समय के लिए परिवार से दूर जाना पड़ता है तो 56 इंच का मजबूत कलेजा फट जाता है. हमारे नेताओं को इस बारे में सोचना चाहिए. फैक्ट्री लगनी चाहिए.”- ज्ञान प्रकाश सिंह

बिहार में उद्योग की कमीः कई महिलाएं जो अपने बाल -बच्चों के साथ दिल्ली जा रही थी , उनलोगों ने कहा कि बिहार में सबसे अधिक भले ही सरकारी नौकरी दी गई हो, लेकिन सरकारी नौकरी से ही काम नहीं चलता है, उद्योग धंधे भी होने चाहिए. आज दिल्ली आगे है क्योंकि वहां कई सारे उद्योग हैं और बिहार में यदि उद्योग होते तो उन्हें काम के लिए दूसरे प्रदेश में नहीं जाना पड़ता. उन्होंने कहा कि यहां नेताओं में औद्योगिक माहौल तैयार करने की इच्छा शक्ति की कमी है. यहां के नेता सिर्फ जात-पात की राजनीति करते हैं और जनता भी जात-पात के नाम पर वोट करती है.

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